युवा वैज्ञानिक जितेंद्र कुमार ने एक अद्वितीय और उपयोगी आविष्कार किया है,
जिसे जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया है। उन्होंने सेंसर युक्त स्वयंसेवक झूला डिज़ाइन किया है, जिसमें सो रहे बच्चे की सुरक्षा और देखभाल की नई दिशा में कदम बढ़ाया है। इस झूले में कई प्रकार के सेंसर्स होते हैं, जिनमें बच्चे की आवश्यकताओं की निगरानी की जाती है। अगर बच्चा रोता है या युरीयन करता है, तो स्वयंसेवक झूला खुद झूलना शुरू कर देता है। यही नहीं, झूले पर लगे सेंसर्स किसी भी जानवर के आगमन को भी ट्रैक कर सकते हैं
और आपको सूचित कर सकते हैं। जितेंद्र की तकनीक ने जापान की मदद की थी, लेकिन वह कोरोना महामारी के कारण वहाँ नहीं जा सके। अब उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए आर्थिक सहायता की आवश्यकता है, ताकि वे अपनी तकनीक को और मजबूत बना सकें। जितेंद्र के परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वे अपने सपनों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। उनका परिवार किसान होने के बावजूद मजदूरी करके अपने आजीवन गुजारा कर रहा है, और जितेंद्र के पास पांच बहिनें और एक माता-पिता हैं।
यह कहानी दिखाती है कि इंसान की मेहनत और संघर्ष के बावजूद, उसके सपने साकार करने के लिए आर्थिक सहायता की आवश्यकता होती है। जितेंद्र के जैसे युवा वैज्ञानिकों को समर्थन और प्रोत्साहित करना हमारे समाज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। इसी के साथ, जितेंद्र की कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि अगर किसी के पास संघर्ष करने के लिए सपने और मेहनत है, तो वह कुछ भी हासिल कर सकता है।
जीतू ने बताया कि वह बचपन से ही इंजीनियर बनना चाहते थे। उन्होंने गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की और फिर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए शहर चले गए। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने एक ऐसा झूला बनाने का विचार किया, जो अपने आप चलता हो। उन्होंने कई प्रयोगों के बाद एक ऐसा झूला बनाया, जिसे सेंसर से नियंत्रित किया जा सकता है।
जीतू का झूला राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हो चुका है। उन्हें हाल ही में एक जापानी कंपनी ने अपने देश में आयोजित होने वाले एक आयोजन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था। जीतू इस आयोजन में हिस्सा लेकर अपने झूले को प्रदर्शित करना चाहते थे, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से वह जापान नहीं जा सके।
जीतू ने बताया कि वह जापान में स्कॉलरशिप पर पढ़ाई करना चाहते हैं। वह इस स्कॉलरशिप के लिए आवेदन भी कर चुके हैं, लेकिन उन्हें अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। जीतू का कहना है कि अगर उन्हें आर्थिक मदद मिल जाए, तो वह अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं।
जीतू के पिता एक किसान हैं और उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। जीतू का कहना है कि उनके परिवार के पास जापान जाने और पढ़ाई करने के लिए पैसे नहीं हैं। वह उम्मीद करते हैं कि कोई मददगार उन्हें आगे बढ़ने में मदद करेगा।