कहावत –
“” आभ फटै, घर ऊलटै, कटै बगतरां कोर’ !
सीस पड़ै, धड़ तड़फड़ै, जद छुटै जालौर”” !!
जालौर का किला पश्चिमी राजस्थान के सबसे प्राचीन और सुदृढ़ दुर्गो में गिना जाता है ! यह सुकड़ी नदी के दाहिने किनारे मारवाड़ की पूर्व राजधानी जोधपुर से लगभग 75 मील दक्षिण में अवस्थित है!
प्राचीन नाम – जाबालिपुर, जालहूर (प्राचीन साहित्य व शिलालेखों के अनुसार)
निर्माण – इस दुर्ग के निर्माण को लेकर विभिन्न विद्वानों में मतभेद है जिसमें डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार निर्माण नागभट्ट प्रथम ने करवाया !
इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार जालौर दुर्ग निर्माता परमार वंश के शासकों को माना है !
जालौर दुर्ग का संपूर्ण विस्तृत वर्णन
प्राचीन साहित्य और शिलालेखों में इस दुर्ग को जाबालिपुर, जालहूर आदि नामों से अभिहित किया है !
जनश्रुति है कि इसका एक नाम जालंधर भी था जिस विशाल पर्वत शिखर पर यह प्राचीन किला बना है उसे सोनगिरी (स्वर्णगिरि) कनकाचल तथा किले को सोनगढ़ अथवा सोनलगढ़ कहा गया है !
यहां से प्रारंभ होने के कारण ही चौहानों की एक शाखा “सोनगरा” उपनाम से लोक प्रसिद्ध हुई है!
जालौर एक प्राचीन नगर है , ज्ञात इतिहास के अनुसार जालौर और उसका निकटवर्ती इलाका गुर्जर देश का एक भाग था तथा यहां पर प्रतिहार शासकों का वर्चस्व था ! प्रतिहारों के शासनकाल (750 – 1018 ई.) में जालौर एक समृद्धिशाली नगर था!
प्रतिहार नरेश वत्सराज के शासनकाल में 778 ई. में जैन आचार्य उद्योतन सूरी ने जालौर में अपने प्रसिद्ध ग्रंथ कुवलयमाला की रचना की!
डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार प्रतिहार नरेश नागभट्ट प्रथम ने जालौर में अपनी राजधानी स्थापित की ! उसने (नागपुर प्रथम) ही संभवत: जालौर के इस सुदृढ़ ऐतिहासिक दुर्ग का निर्माण करवाया!
नागभट्ट प्रथम का कथन – Tradition as recorded in puratan established his capital at Jalor……….. The fort of Jalor is believed to have been built by him. (Nagbhata first)
प्रतिहारों के पश्चात जालौर पर परमारो (पंवारों) का शासन स्थापित हुआ!
इतिहासकार डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने परमारों को जालौर दुर्ग का निर्माता या संस्थापक माना है!
परंतु ऐतिहासिक साक्ष्य इस संभावना की ओर संकेत करते हैं कि उन्होंने पहले से विद्यमान व प्रतिहारों द्वारा निर्मित दुर्ग का जीर्णोद्वार या विस्तार करवाया था !
जालौर दुर्ग के तोपखाने से परमार राजा विशल का एक शिलालेख मिला है , जिसमें उसके पूर्ववर्ती परमार राजाओं का नामोल्लेख है!
विक्रम संवत 1174 (1118 ई.) के शिलालेख में राजा विशल की रानी मेलरदेवी द्वारा सिंधु राजेश्वर के मंदिर पर स्वर्ण कलश चढ़ाने का उल्लेख है !